ना केसरिया पगड़िया रही,
ना वीरो का चौड़ा ललाट।
ना ही अब त्यागी साधू रहे,
जो भगवा पहन उसका शौर्ये बढ़ाया करते थे।
अब बस रह गया है,
पाखंड यहाँ।
अब श्वेत रंग तो नेताओ की चमड़ी पे चढ़े भ्रष्टाचार और,
झूट की काली काई को छुपाने में इस्तमाल होने लगा।
अब ना ही इस देश में प्रेम पनपता है कही,
नाही सच्चाई लोगों से मिलने आती हैं यहाँ ।
किसानो के परिवार की लाशो पे खड़े
ये मॉल, फैक्ट्रीयो और इमारते,
और इमारतों की काली परछाई का राक्षस हँसता है,
सुबह-शाम ज़ोर-ज़ोर से।
हमारे देश का हरा भरा खेत ,
उन्ही हँसी की आवाजों से त्रस्त बंजर होने लगा है।
जिसे कुछ दिनों बाद बचाना भी मुमकिन ना हो।
अब तो ना ही रहा मन में, चक्र का मोल,
उन छब्बीस स्तंभों को भी कई बार हीलाया डुलाया गया हैं।
क्या रह गया है
अब इस देश में ?
सब कुछ तो बदल गया है
तो क्या अब तिरंगे का रंग भी बदल जाएगा ?
-शौर्य शंकर
ना वीरो का चौड़ा ललाट।
ना ही अब त्यागी साधू रहे,
जो भगवा पहन उसका शौर्ये बढ़ाया करते थे।
अब बस रह गया है,
पाखंड यहाँ।
अब श्वेत रंग तो नेताओ की चमड़ी पे चढ़े भ्रष्टाचार और,
झूट की काली काई को छुपाने में इस्तमाल होने लगा।
अब ना ही इस देश में प्रेम पनपता है कही,
नाही सच्चाई लोगों से मिलने आती हैं यहाँ ।
किसानो के परिवार की लाशो पे खड़े
ये मॉल, फैक्ट्रीयो और इमारते,
और इमारतों की काली परछाई का राक्षस हँसता है,
सुबह-शाम ज़ोर-ज़ोर से।
हमारे देश का हरा भरा खेत ,
उन्ही हँसी की आवाजों से त्रस्त बंजर होने लगा है।
जिसे कुछ दिनों बाद बचाना भी मुमकिन ना हो।
अब तो ना ही रहा मन में, चक्र का मोल,
उन छब्बीस स्तंभों को भी कई बार हीलाया डुलाया गया हैं।
क्या रह गया है
अब इस देश में ?
सब कुछ तो बदल गया है
तो क्या अब तिरंगे का रंग भी बदल जाएगा ?
-शौर्य शंकर