Monday, 14 January 2019

एक शक्ल दे दूँ....


मैं चाहता हूँ कि
एक शक्ल दे दूँ
गूँद के
भीनी यादों को
उन हर एक
लमहों पे पड़ी मिट्टी को
जो दरम्यान थी कबसे
उसे आज कोई आकार दे दूँ
कभी लगता है कि
कर दूँ सब बयान
सफ़ेद काग़ज़ पे उधेल
स्याही मे लपेट ख़ुद सा कर दूँ
या क़लम से उठा टाँग दूँ
सफ़ों पर और नज़्म कर दूँ
वैसे ही छोड़ देता महक
सिलबटओन में चादर की
बदलना नहीं चाहता
बेतरतीब ही अच्छा है
जो है, जैसा है, जितना है
दरम्यान हमारे......काफ़ी है
~शौर्य शंकर