भोर के पीली धुप में ,
कभी ओस के बूंद में .
नंगे पैरों के छाप में ,
कभी असमंजस के हाल में .
उस तेज़ हवा के झोखों में,
कभी बादलों के नाव में .
तुझे महसूस करता हूँ ......
पत्तों के उड़ते साँस में,
कभी फूलों के मुस्कान में।
बहते पानी के अहँकार में,
कभी पत्थर के कोमल प्यार में .
अगरबत्तियों के जलने के मकसद में,
कभी चन्दन से महके संसार में .
तुझे महसूस करता हूँ .......
उड़ते होठों के पंख में ,
कभी टिमटिमाते नैनो के जाल में .
ठंडी धुप के सेलाब में ,
कभी आसमान से गिरते आब में .
तुझे महसूस करता हूँ ....
शौर्य शंकर