कभी टिमटिमाते ख़ुशी से ,
कभी नाराज़ अंधेरों में गुम से .
कभी ज़िन्दगी की गठरी ढोते से ,
कभी उम्मीदों की पतली पगडण्डी पे लड्खराते से .
ये चेहरें ....
कभी बिना शर्म की नज़रों से ,
कभी बिना मुस्तकबिल के माथे से .
कभी बिना सुहाग के दुल्हन से ,
तो कभी नापाक इरादों से दिखते
ये चेहरें ....
कभी सफ़ेद पड़े मुर्दे से ,
कभी टीस भरी घावों से .
कभी जंग लगे इंसानियत से ,
कभी नापाक हुए इबादत से दिखते
ये चेहरें .....
शौर्य शंकर
शौर्य शंकर
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