Wednesday, 29 August 2012

" आज फिर एक सच है देखा .."


आज फिर सच के कोख में ,
झूठ को पनपते, है देखा .

भरे हुए मटके में से, 
कपट को छलकते ,है देखा .

खुद पे विशवास करने वालों का भी ,
आज विशवाश डिगते ,है देखा .

दोस्ती-यारी का मन्त्र जपने वालों को भी ,
लोगों के ज़ख्म कुरेदते , है देखा .

भगवान् सी सीरत वालों को भी,
अपनी ही पीठ के पीछे छुपते, है देखा .

हाँ मै बुरा ही सही, इन बुरों के लिए ,
क्यूँ पलकें नम हुई , कोने में बैठे उनको, जब सिसकते ,है देखा .

तू तो दर्द में ही रोता - बिलखता है,
मैंने तो ख़ुशी में भी ,लोगों को होठ सीते ,है देखा .
   
इस दुनिया में हम जैसों का कुछ तो , हों यारों ,
क्यूँ अपने रूह से ही, अपने जिस्म को बिछड़ते, है देखा .

गलत फ़हमी थी की इंसान हूँ, पर दिमाग की दौड़ के बाद ,
हर रोम से पसीने की जगह, खून की बूंदे टपकते , है देखा .

खून कितना प्यारा शब्द है ना, पर क्यूँ ?
आज हर एक कतरे को  दूसरे से  झगडते , है देखा .

प्यार से तो खौफ् सा होता हे अब , क्या इसीलिए ?
नफ़रत को तहेदिल से , लोगों के आलिंगन में समाते, है देखा .

अब तो मेरी आँखों ने भी पुछ लिया है मुझसे ,
क्या झुलसते द्वेष की गर्मी को दिल के बर्फ् खाने में , है देखा .
    
पहले तो तकल्लुफ़ और शुक्रिया जैसे शब्दों का ज़माना था ,
पर अब तो अंग्रेजी की गालिओं की फरमाइशों  में लोगों को खोया , है देखा .
    
जनाब पहले की गालियाँ भी बड़े एहतियात और प्यार के लाफ्फ्जों में लपेट के परोसी जाती थी ,  
पर अब तो प्यार के बोल में से भी , तौहीन की नापाक बू आते है देखा .

हम उनलोगों में हैं , जो दुख़ में भी ख़ुशी तलाशते हैं ,
पर क्यूँ अब सब कुछ आस-पास,  नगवार होते है देखा .

जीना तो तब सीखा  हमने , मुर्दों को भी जब,
अपनी आखरी ख्वाइशों के लिए झगड़ते है देखा .

आज फिर एक सच है देखा ..



शौर्य  शंकर 

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