आज फिर सच के कोख में ,
झूठ को पनपते, है देखा .
भरे हुए मटके में से,
कपट को छलकते ,है देखा .
खुद पे विशवास करने वालों का भी ,
आज विशवाश डिगते ,है देखा .
दोस्ती-यारी का मन्त्र जपने वालों को भी ,
लोगों के ज़ख्म कुरेदते , है देखा .
भगवान् सी सीरत वालों को भी,
अपनी ही पीठ के पीछे छुपते, है देखा .
हाँ मै बुरा ही सही, इन बुरों के लिए ,
क्यूँ पलकें नम हुई , कोने में बैठे उनको, जब सिसकते ,है देखा .
तू तो दर्द में ही रोता - बिलखता है,
मैंने तो ख़ुशी में भी ,लोगों को होठ सीते ,है देखा .
इस दुनिया में हम जैसों का कुछ तो , हों यारों ,
क्यूँ अपने रूह से ही, अपने जिस्म को बिछड़ते, है देखा .
गलत फ़हमी थी की इंसान हूँ, पर दिमाग की दौड़ के बाद ,
हर रोम से पसीने की जगह, खून की बूंदे टपकते , है देखा .
खून कितना प्यारा शब्द है ना, पर क्यूँ ?
आज हर एक कतरे को दूसरे से झगडते , है देखा .
प्यार से तो खौफ् सा होता हे अब , क्या इसीलिए ?
नफ़रत को तहेदिल से , लोगों के आलिंगन में समाते, है देखा .
अब तो मेरी आँखों ने भी पुछ लिया है मुझसे ,
क्या झुलसते द्वेष की गर्मी को दिल के बर्फ् खाने में , है देखा .
पहले तो तकल्लुफ़ और शुक्रिया जैसे शब्दों का ज़माना था ,
पर अब तो अंग्रेजी की गालिओं की फरमाइशों में लोगों को खोया , है देखा .
जनाब पहले की गालियाँ भी बड़े एहतियात और प्यार के लाफ्फ्जों में लपेट के परोसी जाती थी ,
पर अब तो प्यार के बोल में से भी , तौहीन की नापाक बू आते है देखा .
हम उनलोगों में हैं , जो दुख़ में भी ख़ुशी तलाशते हैं ,
पर क्यूँ अब सब कुछ आस-पास, नगवार होते है देखा .
जीना तो तब सीखा हमने , मुर्दों को भी जब,
अपनी आखरी ख्वाइशों के लिए झगड़ते है देखा .
आज फिर एक सच है देखा ..
शौर्य शंकर
शौर्य शंकर
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