पता नहीं कहाँ, मेरी पलकों से फिसल गया ,
मेरा सपना, जो मेरा अपना था, कहाँ चला गया!
समुद्र की गहराई में समाए, मोती सा शांत है,
इतना प्यारा, बिलकुल छोटे फ़रिश्ते सा है।
ख़ामोश रात में, हवाओं की बातों सा है,
पता नहीं कल से कुछ खाया भी है, के नहीं।
उस बेचारे के पास तो, पैसे भी नहीं हैं,
पैसे की बात छोड़ो ना ... उसको तो ....!
मैं क्या करूं, कोई बताओ न मुझे,
मैं कहाँ जाऊं ,किससे मदद मांगू।
कोई तो फ़रियाद सुनो मेरी,
अरे लादो ना कोई, सपना मेरा।
उसके बगैर मुझे चैन नहीं है, अब तो,
दिन-रात जागता रहता हूँ, खयालों में उसके।
मेरे दिल के चौखट पे दस्तक दे रहा है, देखो न,
वो फिर पुकार रहा है मुझे, मदद के लीए।
डर के मारे मेरे पैर, पथरा गए हैं,
क्यों, ये मेरा ख़ून जमता जा रहा है?
हाथों को क्या होता जा रहा है, ये क्यूँ हिलते नहीं?
मेरी पलकें, क्यूँ थम सी गई हैं अब?
ये अँधेरा सा क्यों छाने लगा, आँखों के सामने?
मुझे कुछ दिखता क्यूँ नहीं अब?
ये आवाज़ किसकी है, कौन हँस रहा है मुझ पर?
दूर हो जाओ मुझसे, मैंने क्या बिगाड़ा है तेरा?
ये आवाज़ तो, और तेज़ होती जा रही है,
मुझे बक्श दो न, मैं तो बस अपने सपने को ढूंड रहा हूँ।
कोई तो मेरे कान ढांप दो ,और नहीं सुन सकता ये शोर,
अचानक से ये क्या हो गया मुझे ,कुछ भी सुनता क्यों नहीं?
ऐ मन, तू डरता क्यों है पगले,
कुछ पल के लिए ही सही, ज़िंदा तो हूँ।
मेरा दिमाग मुझे निकालेगा, इस भवर से ,
पर ये यूं हर छण, झपकियाँ लेता क्यूँ है?
चाहे सब छूट जाए, पर मेरी हिम्मत साथ तो है,
मैं नहीं कोई गम नहीं, मेरी हिम्मत और सपना तो है।
मेरा जिस्म समझता क्यूँ नहीं, मेरा जाना कितना ज़रूरी है
शायद, मेरे जिस्म का साथ यहीं तक का था।
पर ये तलाश ज़ारी रहेगी,
मेरा सपना, जो मेरा अपना था, कहाँ चला गया!
समुद्र की गहराई में समाए, मोती सा शांत है,
इतना प्यारा, बिलकुल छोटे फ़रिश्ते सा है।
ख़ामोश रात में, हवाओं की बातों सा है,
पता नहीं कल से कुछ खाया भी है, के नहीं।
उस बेचारे के पास तो, पैसे भी नहीं हैं,
पैसे की बात छोड़ो ना ... उसको तो ....!
बोलना भी नहीं आता अभी तक, जो कुछ कह भी सके ,
कहीं कुछ हो न गया हो उसे,मैं क्या करूं !
कोई तो मेरी मदद करो,
मेरा सपना कहीं खो गया।
कहीं कुछ हो न गया हो उसे,मैं क्या करूं !
कोई तो मेरी मदद करो,
मेरा सपना कहीं खो गया।
मैं क्या करूं, कोई बताओ न मुझे,
मैं कहाँ जाऊं ,किससे मदद मांगू।
कोई तो फ़रियाद सुनो मेरी,
अरे लादो ना कोई, सपना मेरा।
उसके बगैर मुझे चैन नहीं है, अब तो,
दिन-रात जागता रहता हूँ, खयालों में उसके।
मेरे दिल के चौखट पे दस्तक दे रहा है, देखो न,
वो फिर पुकार रहा है मुझे, मदद के लीए।
डर के मारे मेरे पैर, पथरा गए हैं,
क्यों, ये मेरा ख़ून जमता जा रहा है?
हाथों को क्या होता जा रहा है, ये क्यूँ हिलते नहीं?
मेरी पलकें, क्यूँ थम सी गई हैं अब?
ये अँधेरा सा क्यों छाने लगा, आँखों के सामने?
मुझे कुछ दिखता क्यूँ नहीं अब?
ये आवाज़ किसकी है, कौन हँस रहा है मुझ पर?
दूर हो जाओ मुझसे, मैंने क्या बिगाड़ा है तेरा?
ये आवाज़ तो, और तेज़ होती जा रही है,
मुझे बक्श दो न, मैं तो बस अपने सपने को ढूंड रहा हूँ।
कोई तो मेरे कान ढांप दो ,और नहीं सुन सकता ये शोर,
अचानक से ये क्या हो गया मुझे ,कुछ भी सुनता क्यों नहीं?
ऐ मन, तू डरता क्यों है पगले,
कुछ पल के लिए ही सही, ज़िंदा तो हूँ।
मेरा दिमाग मुझे निकालेगा, इस भवर से ,
पर ये यूं हर छण, झपकियाँ लेता क्यूँ है?
चाहे सब छूट जाए, पर मेरी हिम्मत साथ तो है,
मैं नहीं कोई गम नहीं, मेरी हिम्मत और सपना तो है।
मेरा जिस्म समझता क्यूँ नहीं, मेरा जाना कितना ज़रूरी है
शायद, मेरे जिस्म का साथ यहीं तक का था।
पर ये तलाश ज़ारी रहेगी,
क्यूंकि मेरा सपना कहीं खो गया है ....
शौर्य शंकर
शौर्य शंकर
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