Saturday, 25 August 2012

"पुराने दिवार पे लगे फटे पोस्टर की तरह...."

किसी पुरानी दिवार पे ......

किसी पुराने दिवार पे लगे, फटे पोस्टर की तरह ,
ज़िन्दगी के भी चिथड़े हुए पड़े हैं . 
जिसे आंधी का डर तो ज़रूर है , पर करे क्या ?
अपने फटे कोने की परछाई में , अपना मुह छुपाए पड़े हैं . 
रात की सीली हवा में , ठण्ड लगने का डर भी तो है .
ओस की वो बूंदें जो माथे पे, पसीने की तरह पडे हैं .
जो पोस्टर और दिवार के बीच लगे गोंद के रिश्ते को ,ढीला न कर दे ,
जिसकी वज़ह से ये अस्तित्व जो सलामत  हैं .
किसी पुराने दिवार पे लगे फटे पोस्टर की तरह .....

पर डर सिर्फ इन विपदाओं का ही नहीं ,
डर तो उन छोटी चीटीओं से है अब .
जो दावत करने को गोंद के टुकड़े ले जाते हैं.
सुना है! चीटीयां बड़ी मेहनती होती हैं , फिर क्यों ?
सिर्फ जाने के लिए, मेरी किस्मत में इतने छेद कर दिए हैं.
कुछ डर तो गली के ,उन आवारा बच्चों से है ,
जो हाल ही में , न जाने कितनो का घर उजाड़ चुके हैं .
अब कुछ ही हैं , जो सहमे से कांपते हुए ,
बड़ी -बड़ी आँखों से ,अपनी आती मौत तलाशते रहते हैं .
जो पता नहीं अगले दिन देखने की ख्वाइश रखते भी हैं, के नहीं .
किसी पुराने दिवार पे लगे फटे पोस्टर की तरह...........

जब तक कोई फ़रिश्ता आके उनको ,
किसी नए दौर के सुंदर पोस्टर के नीचे न दबा दे .
इस गुमनामी के आढ़ में ही सही,
अब किसी का डर तो नहीं होगा .
ज़िन्दगी गुमनाम तो हो ही जाएगी ,
पर रहेगी तो सही .
किसी पुराने दिवार पे लगे फटे पोस्टर की तरह.......



शौर्य शंकर 

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