Saturday, 5 January 2013

' शोर '


चलते-चलते मैं , थक गया ,
रुका , अपनी साँसों को समझाने .

कुछ देर और लग गई मुझे,
डूबी साँसों को साहिल तक लाने में .

बैठे - बैठे देखा ,शोर चारों तरफ ,
भीड़-भार भरी सड़कों पर चलती गाड़ियाँ .

पी-पी , ट्रिन-ट्रिन शोरों के बीच ,
रेंगते से दिखते लोग थोड़े-थोड़े .

जुबां पे गालियाँ , आँखों में ख़ून लिए लोग ,
एक-दूसरे को घूरते ,बे-रहम गिद्धों की तरह .

सब को एक दूसरे से आगे निकलना है ,
क्यूँ और किस  बात की जल्दी है , पता नहीं .


' शौर्य शंकर '




1 comment:

  1. Aur shayad jab tak pata chalega tab tak bahot der ho chuki hogi...
    Very Nice...

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