चलते-चलते मैं , थक गया ,
रुका , अपनी साँसों को समझाने .
कुछ देर और लग गई मुझे,
डूबी साँसों को साहिल तक लाने में .
बैठे - बैठे देखा ,शोर चारों तरफ ,
भीड़-भार भरी सड़कों पर चलती गाड़ियाँ .
पी-पी , ट्रिन-ट्रिन शोरों के बीच ,
रेंगते से दिखते लोग थोड़े-थोड़े .
जुबां पे गालियाँ , आँखों में ख़ून लिए लोग ,
एक-दूसरे को घूरते ,बे-रहम गिद्धों की तरह .
सब को एक दूसरे से आगे निकलना है ,
क्यूँ और किस बात की जल्दी है , पता नहीं .
' शौर्य शंकर '
Aur shayad jab tak pata chalega tab tak bahot der ho chuki hogi...
ReplyDeleteVery Nice...