मैं आज भी उन्ही बचपन के लम्हों और यादों से खेलता हूँ
तू कब हाथ छूड़ा चली गई पता ही नहीं चला
आज भी तेरी आँखें पीछा करती है दिन-रात
इस शहर के धुएं में कहीं खो गया है तेरा चेहरा
पीछले 7 दिनों से तेरा चेहरा ही खोज रहा हूँ यहाँ-वहां
ऍफ़. आई. आर को तस्वीर मांगी है पुलिस वालों ने आज
तेरी आँखों से ही पूछ रहा हूँ तेरे चेहरे का पता
वो भी बेचारी रह-रह रो देती है मेरी दीवानगी देख
मैं मन में उठे तूफ़ान को सुला दिया करता हूँ
मेज़ पे रात जलाके नींद से भोर तक बातें करता हूँ
सुबह फिर निकल जाता हूँ तेरा चेहरा ढूंढने इन चेहरों के बीच
अभी क़ुतुब मीनार पे चढ़, जाते बादलों से पुछा है
उन्होंने एक खोया चेहरे के बारे में बताया है अभी
उसी चेहरे का इंतज़ार कर रहा हूँ मैं यहाँ कब से
वो वहां कोई आता दिख रहा है, कहीं वही तो नहीं
वो हाथ बढ़ा बुला रही है, हाँ मैं अभी आता हूँ
पर मैं उससे दूर क्यों हो रहा हूँ कहाँ जा रहा हूँ
ये लोग क्यों घेरे खड़े हैं मुझे क्या हो गया ऐसा
तेरी आँखें मुझे यूँ गोद में लिए ऐसे रो क्यों रही है
अपने दुपट्टे से मेरा चेहरा क्यों साफ़ कर रही है
मेरी माँ की रोने की आवाज़ क्यों आ रही है मुझे
अरे लोग उठा के कहाँ ले जा रहे हैं मुझे कंधे पे
ये चटाई में लपेट मिट्टी में क्यों दफ़ना रहे हैं मुझे
अरे मुझपे ये लोग मिट्टी क्यों डाल रहे हैं
सुनो , मुझे एक बार मेरी माँ से तो मिल लेने दो
एक बार गले लगा के ये तो पूछ लेने दो वो क्यों रो रही है
कोई सुन रहा है क्या मुझे
कोई तो जवाब दो.... सुनो.. ए भाई!
~ शौर्य शंकर