Thursday, 15 May 2014

भीनी ख़ुश्बू ....




वही मिट्टी की भीनी ख़ुश्बू
वही लहरों पे तैरती  ठंडी हवा

वही बाँस के सूखे सुनहरे पत्ते
वही चौराहे के पुराने पेड़ की आम्मियाँ

और वही नदी किनारे महुए के पेड़ की बेघर परछाई
जो मेरा हाथ थामे गाँव के पंचायत जा  रही है 


~ शौर्य शंकर 

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