Tuesday, 20 January 2015

तू जो अगर छू दे माँ.....




अभी तो ये बस सफ़ों पे टंगे चंद लफ्ज़ हैं
तू जो इन्हें अगर छू दे माँ,
हर हर्फ़ गज़ल हो जाए

कभी समझा नहीं तेरी उन शफक़ नम आँखों को
वो आशुफ़्ता बयां करती
और मैं तुझे अनपढ़ समझता रहा

हथेलिओं की मिटती लकीरों को देख जब रो देता हूँ
मेरी हथेली को अपनी हथेलियों पे रख
मुस्कुराके माथा चूम लेती है मेरा

-शौर्य शंकर




कुछ यूँ मैं अब ....


कुछ यूँ खुद को आज़माने लगा हूँ 

इश्क़ की तासीर में खुदा पाने लगा हूँ 


आइने में मैं खुद को अब ये दिखाने लगा हूँ 
क्या इसीलिए मैं बिलावजह गुनगुनाने लगा हूँ 

लोगों के रक़ावत को फना कर धुएं में उड़ाने लगा हूँ 

इस कदर अब मैं तेरे इश्क़ को मुकम्मल बनाने लगा हूँ 



~ शौर्य शंकर 

अब दुआओं में ही जीता हूँ....

May 23, 2013 

अब दुआओं में ही जीता हूँ मैं कबसे
नहीं तो शख़्सियत कब की दफनाई जा चुकी है

-शौर्य शंकर

Tuesday, 6 January 2015

तू दिखे है .....

बड़ी मुश्किलात दरपेश रही जवानी के कुछ साल
धड़कते दिल को भी थपकियाँ दे-दे सुलाते रहे

ये कसक तो दिल के परे थी हमारे
फिर भी दिल को तसल्ली दे-दे समझाते रहे

बड़ी ख़्वाहिश थी हमें किसी से इश्क़ करने की
मैं बेवक़ूफ़, चेहरों में ख़ुदा तलाशता रहा

तेरी रौशनी में, कोई भी बुत अब दिखे ही नहीं
चौंदयाई आँखों से अब सब साफ़ जो दिखे है

सब पूछे हैं तेरा नाम, मज़हब मेरे मेहबूब
मैं कुछ भी कहता नहीं, सब पंडित, इमाम से जो दिखे है

अब कोई आशिक़ हो तेरा तो बता भी दूँ
ये क्या समझेंगे मज़हब के साए में लड़ने वाले

तू तो आइना है रूह बन रहता है सबमे
क्या दिखेगा उन्हें जो खुद से ही मुख़ातिब हुए नहीं



~ शौर्य शंकर