अभी तो ये बस सफ़ों पे टंगे चंद लफ्ज़ हैं
तू जो इन्हें अगर छू दे माँ,
हर हर्फ़ गज़ल हो जाए
कभी समझा नहीं तेरी उन शफक़ नम आँखों को
वो आशुफ़्ता बयां करती
और मैं तुझे अनपढ़ समझता रहा
हथेलिओं की मिटती लकीरों को देख जब रो देता हूँ
मेरी हथेली को अपनी हथेलियों पे रख
मुस्कुराके माथा चूम लेती है मेरा
-शौर्य शंकर
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