हर पते को कितना कुछ पता होता है।
हर पते का अपना एक पता होता है।
हर पते का कुछ नाम होता है।
एक नम्बर होता है।
कोई गली, कोई मौहल्ला होता है।
किसी फलाना चौराहे से बायां या दायां होता है।
हर पते का अपना रंग होता है।
अपनी गंन्ध होती है।
अलग पहचान होती है।
ढ़ेर सी यादें होती है।
अनकही बातें होती हैं।
कुछ चर्चे होते हैं।
कुछ ख़बरें होती हैं।
कुछ दबी रूदन होती है।
कुछ ताज़ा ज़ख्म होते हैं।
पतों से उनका इतिहास, भूगोल, गणित न जाने कितनी चीज़ें जुड़ी होती हैं।
हर गॉव , मौहल्ला, शहर में
एक न एक ऐसी जगह होती है
जहाँ एक पता पूछने वाले को
कई पता बताने वाले बेल्ले
मार्गदर्शक मिल जाते हैं।
आज कल ये प्रजाति बहुत ही ज्यादा फल-फूल रहा है
और ये ज़्यादातर चाय , पान , किराने ,नाई
या कपड़े इस्त्री करने वालों के दूकान के आस-पास झुण्ड में पाए जाते हैं।
जिनसे किसी का पता पूछने पर कुछ ऐसे पता बताते हैं …
बेल्ला १. -अ.. . . ये. . . उस बरगद के पेड़ से सीधा साइकिल के दूकान से सटा हुआ है. .
बेल्ला २. … हाँ वो बूढी अम्मा के सामने वाला घर जिसकी बेटी छोटी जात के लड़के के साथ भाग गई थी ……
बेल्ला ३. अबे वही न जिनके घर दो खूंखार कुत्ते भौंकते हैं.…
जिनका भतीजा आतंकवादियों से लड़ते शहीद हो गया था..........
बेल्ला ४. नहीं बे…उससे पांचवा घर … मास्टर जी का पता खोज रहे हैं बे .......
बेल्ला २. भगरू नाई के साथ वाली गली में बायें तरफ से दूसरा माकन ,
जिसकी बहु ने खुद को जला लिया था....
बेल्ला १. वो ३ मंजिला माकन न ……
बेल्ला ३ नहीं बे …मंदिर के पीछे लाल वाला घर , जिसमे वो खूबसूरत मेम रहती थी.………।
बेल्ला २. जहाँ सफ़ेद एम्बेसडर कार खड़ी रहती है …
बेल्ला १. मैं भी तो वही बता रहा था …बरगद के पेड़ से सीधा साइकिल के दूकान से सटा हुआ है. .
देखिये एक ही पते के कितने पते होते हैं
जो पते का पता रखने वालों को भी नहीं पता
जब तक कोई न पूछे
पते का अपना पता नहीं होता
कोई पूछे या न पूछे
वहां जाए या न जाए
वो रहता है इंतज़ार में वही
इंतज़ार ही उसे हमेशा ज़िंदा रखता है
पते को पता रखता है।
~ शौर्य शंकर
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