तेरी ललकार सुन उठ गया हूँ फिर
देख ज़ख़्मी हूँ ,
पर हारा नहीं हूँ मैं ।
मैं भी कुछ कम ज़िद्दी नहीं ,
आ, हो जाए दो-दो हाथ,
अकेला ही काफी हूँ मैं ।।
आख़री सांस तक दूंगा तुझे टक्कर ,
माँ तिरंगे का बेटा,
बड़ा दुलारा हूँ मैं ।
जा दिया तुझे ये शरीर मैंने अपना,
मिटाओगे मेरा " शौर्य " कैसे,
हवा हूँ , पानी हूँ , धूप हूँ, ज़र्रा-ज़र्रा हूँ मैं।।
~शौर्य शंकर
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