कुछ यूँ खुद को आज़माने लगा हूँ
इश्क़ की तासीर में खुदा पाने लगा हूँ
आइने में मैं खुद को अब ये दिखाने लगा हूँ
क्या इसीलिए मैं बिलावजह गुनगुनाने लगा हूँ
लोगों के रक़ावत को फना कर धुएं में उड़ाने लगा हूँ
इस कदर अब मैं तेरे इश्क़ को मुकम्मल बनाने लगा हूँ
~ शौर्य शंकर
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