Tuesday, 6 January 2015

तू दिखे है .....

बड़ी मुश्किलात दरपेश रही जवानी के कुछ साल
धड़कते दिल को भी थपकियाँ दे-दे सुलाते रहे

ये कसक तो दिल के परे थी हमारे
फिर भी दिल को तसल्ली दे-दे समझाते रहे

बड़ी ख़्वाहिश थी हमें किसी से इश्क़ करने की
मैं बेवक़ूफ़, चेहरों में ख़ुदा तलाशता रहा

तेरी रौशनी में, कोई भी बुत अब दिखे ही नहीं
चौंदयाई आँखों से अब सब साफ़ जो दिखे है

सब पूछे हैं तेरा नाम, मज़हब मेरे मेहबूब
मैं कुछ भी कहता नहीं, सब पंडित, इमाम से जो दिखे है

अब कोई आशिक़ हो तेरा तो बता भी दूँ
ये क्या समझेंगे मज़हब के साए में लड़ने वाले

तू तो आइना है रूह बन रहता है सबमे
क्या दिखेगा उन्हें जो खुद से ही मुख़ातिब हुए नहीं



~ शौर्य शंकर 

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