Friday, 28 November 2014

ये शहर में धुआँ-धुआँ सा क्यों है .....



दिल में छुपा रखा था सालों से तेरा इश्क़
अचानक ये शहर में धुआँ-धुआँ सा क्यों है

कभी कहा की इश्क़ है, कभी कहा नहीं
मैं ही भरमाया हूँ या कोई साया सा है

अब चाँद में भी तू ही दिखे है मेरे माशूक़
इतना तो बता दे आखिर इस मर्ज़ की दवा क्या है

वो बे-शर्म घुमते है शहर में हज़ार वादे तोड़ के भी
हमने तो बस इश्क़ किया ' शौर्य ' और चेहरा छुपाए घुमते हैं

~ शौर्य शंकर 

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