अजी सिक्कों का कहाँ वजूद था जो कुछ ख़रीद सकते
वो तो इंसान की फ़ितरत है जो हर चीज़ खरिदने-बेचने की हो गई
ऐ-वई बदनाम किये फिरते हैं कमबख़्त दूसरों को
वो तो हमारी नीयत है जो दूसरों को लूटने की हो गई
हर चीज़ से नवाज़ा है खुदा ने हमें, शुक्र है
वो तो बस ये आदत है जो हमारी-तुम्हारी करने की हो गई
~शौर्य शंकर
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