Wednesday, 17 December 2014

पेशावर अटैक.....

उन मासूमों के याद में (पेशावर अटैक )...
किसी के आँखों का तारा था
किसी माँ का बेटा दुलारा था
किसी के आँगन में बजती पाजेब थी
किसी बूढ़े बाप का सहारा थी

किसी माँ का ख़्वाब खेलता था उसमे
किसी परिवार के उम्मीदों का किनारा था उसमे
किसी अंधी आँखों की रौशनी थी उसमे
किसी मुल्क़ का मुस्तकबिल सुनेहरा था उनमे

मुस्कुराके गले लिपट गए उस बारूद के वो
कैसा भोला बचपन खिलखिलाता था उनमे
क्या कसूर था उनका वो पूछेंगे भी नहीं
उन्हें क्या लेना क्या मेरा क्या तुम्हारा था उनमे

तुम भी तो किसी माँ की आँचल में खेलते थे
फिर क्यों सैकड़ों की कोख उजाड़ा है तुमने
उन फरिश्तों को तो पनाह मिल गई होगी खुदा के घर
ये तो बतादे, तुम्हारा क्या बिगाड़ा था उन्होंने

अब तो अच्छी लगती होंगी तुझे वो वीरान गलियाँ, वो घर
बारूद के टीलों पे जो रख दिया है ये शहर तुमने
जा देखले हर चौखट पे खाट उलटी खड़ी है
हर आँगन से चीखने की आवाज़ें तो सुनली होगी तुमने
अब बहादुरी का तमगा तो मिला ही होगा तुझे
पूरी इंसानियत को जो शर्मशार कर दिया तूने
वो करेंगा फैसला तेरा भी एक न एक दिन ज़रूर
 खुदा  करे न ज़मीन नसीब हो न आसमान ही तुझे  



~शौर्य शंकर 

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