ये चलते कौन आगे निकल गया ,
जो पीछे होने का एहसास दे गया मुझे ।
चल तू आगे निकल इससे सोचता हूँ ,
पर वो तो धुंध हो गया .............
वो कौन है ,वहां सड़क के किनारे ?
ऐसे क्यों बैठा है पेड़ के सहारे ?
शायद ...शराबी है मदहोश ,
अपना सा दीखता ,पर क्यूँ बैठा है खामोश ?
चलूँ देखूं तो सही , है कौन ?
पर गदली मंद रौशनी में दीखता भी तो नहीं ।
औंधे मुह पड़ा बड़बड़ा रहा कुछ अब ,
ये आवाज़ तो सुनी है , पर कब ।
कभी हँसता ,कभी रोता , कौन है ये ?
ज़हनी मशक्क़त कर रहा , कब से ।
उसे पलट पुछा , कौन हो भई ?
हालत देख ,रूह मेरी मुह तक चली आई ।
ख़ून से लतपत जिस्म उसका ,
जैसे हर रोम चिन्घाढ़ रहा ...मदद को ।
पुछा क्या हुआ तुझे ,
" ज़िन्दगी के थपेड़ो के जख्म है ये " ।
पर अपने ज़ख्मों को देख़ हँसता क्यूँ है ?
पागल है शायद ,अब तो शुबा है ये ।
गोद मे उठा, ले चला दवाख़ाने की ओर ,
एक अजीब सी खुशी थी, जब देखा उसके चेहरे की ओर ।
जिस्मानी मशक़्क़त देख आँख भर आई,
रोता है क्यूँ तू ,यही तो ज़िंदगी है मेरे भाई ।
खुशी बेवफ़ा-सी , पल दो पल ही साथ थी ,
दुख की दोस्ती है ,जो साथ चलती है आई ।
अचानक सांस उखड़ने सी लगी, मेरी यों ,
उसने कहा कुछ देर तू रुकता नहीं, क्यों ।
सड़क किनारे पुलिया पर बैठ साथ उसके,
उखड़ती बेचैन साँसों को मैं समेटने लगा ।
देख मुझे वो बोला हिम्मत की पगड़ी बांध ,
होसले के पंख फड़फड़ा , डर पे नकेल लगा ।
ये कह नम आँखों से मुझसे लिपट गया,
मुट्ठी मे बंद रेत सा पल मे फिसल गया ।
उसकी कराह क्यूँ महसूस होने लगी ,
हर लम्हा रुई सी हवा मे बहने लगी ।
आँख खोली ....उसका नामो निशां न था ,
हर ज़र्रे से , पल मे वो फनाह सा था ।
उसकी आवाज़ ज़हन मे दस्तक दे रही थी,
दरवाज़ा खोल देखा कोई भी खड़ा न था ।
उदास दिल की उँगली थामे चल पड़ा ,
ला-इलाज ज़ख्म यादों की मुझे वो दे गया ।
हर लम्हा क्यूँ अजगर सा चिपटा है?
क्यूँ आईने मे वो मुझे दिखता है ?
पाकीज़ा इबादत सा मुझमे घर कर गया ,
ख़यालों मे उसकी बातों का किला दिखता है ।
ये कौन है ! कोई फरिश्ता तो नहीं ,
साया हूँ मोहसीन ,मुख़ातिब जुर्रत-ए-मुख्तार को ।
शौर्य शंकर