मैं दिल की खिड़की पर बैठा हूँ ,
कब से, तेरी एक अया पाने को ।
मैं धूप की आढ़ मे खड़ा हूँ ,
कब से, तूझे पलकों से छू जाने को ।
मैं हवा मे रूई सा बहता हूँ ,
कब से , तेरी पल्लू की महक पाने को ।
मैं नींद बना जगता हूँ ,
कब से , तेरी ख़्वाब मे आने को ।
मैं हर हर्फों मे गुदा हूँ ,
कब से , तेरी ज़ुबा छू जाने को ।
मैं इबादत बना फिरता हूँ ,
कब से, तेरी रूह मे समाने को ।
मैं काजल बना चिपका हूँ ,
कब से , तूझे बुरी नज़र से बचाने को ।
मैं तेरी खुशी मे महकता हूँ ,
कब से, तेरी बलाई लवों पर आने को ।
मैं दिन-रात तेरा ही नाम जपता हूँ ,
कब से , तेरी मुहोब्बत मे ख़ुदा पाने को ।
मैं तेरी ख़ून मे गुलाब सा रहता हूँ ,
कब से , तेरी रग-रग मे समा जाने को ।
शौर्य शंकर
शौर्य शंकर
No comments:
Post a Comment