Tuesday, 16 October 2012

कब से ....


मैं दिल की खिड़की पर बैठा हूँ ,
कब से, तेरी एक अया पाने को ।

मैं धूप की आढ़ मे खड़ा हूँ ,
कब से, तूझे पलकों से छू जाने को ।

मैं हवा मे रूई सा बहता हूँ ,
कब से , तेरी पल्लू की महक पाने को । 

मैं नींद बना जगता हूँ ,
कब से , तेरी ख़्वाब मे आने को । 

मैं हर हर्फों मे गुदा हूँ ,
कब से , तेरी ज़ुबा छू जाने  को ।

मैं इबादत बना फिरता हूँ ,
कब से, तेरी रूह मे समाने को ।

मैं काजल बना चिपका हूँ ,
कब से , तूझे बुरी नज़र से बचाने को । 

मैं तेरी खुशी मे महकता हूँ ,
कब से, तेरी बलाई लवों पर आने को ।

मैं दिन-रात तेरा ही नाम जपता हूँ ,
कब से , तेरी मुहोब्बत मे ख़ुदा पाने को ।

मैं तेरी ख़ून मे गुलाब सा रहता हूँ ,
कब से , तेरी रग-रग मे समा जाने को ।


शौर्य शंकर 

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