लहुलुहान ये मिट्टी,
ये अलाव में मकान।
ये चीखें है किसकी ,
ये कटी है क्यूँ जुबान ।
सन्नाटों की ये फिज़ा,
क्या दहशत की है छाँव?
ये बेगैरत जदा गाँव ,
लाशों पे क्यूँ रखा है पाँव?
ये सरहदों के नासूर ज़ख्म ,
मुर्दे भी मांगते है यहाँ कफ़न ।
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