तुम्हारी किताब जो मेरी मेज़ पर रखी है ,
उसमे रखा गुलाब सुख गया है ।
हर एक पन्ने से आती खुशबू ,
ये खुशबू तेरी है या गुलाब की ।
मुद्दतों बाद मैंने एक अया पाई है ,
इस किताब मे अपने बिसरे यादों की ।
तुम्हारी बातें , नटखट इरादे और सादगी,
सब सैंत के रखा था, दिल की तिजोरी मे ।
वक़्त के जालों मे लिपटी ,दबी सी ,
एक कोने मे भुलाई पड़ी थी कब से ।
सदियों बाद ही सही गठरी खोली है ,
आज गुस्ताखी की, यादों के बुत मे जान फूकने की ।
इस वक़्त के पहिये की रफ्तार कुछ ज्यादा ही है ?
हज़ारों पन्नों की ज़िंदगी , एक पल के पुड़िया मे रखी थी ।
कभी रो देता हूँ उन हसते यादों मे ,
कभी हस देता हूँ उन रोती यादों पे ।
छु हो गई ,एक चुटकी मे कहीं ,
ज़िंदगी थी ,चलो कल की ही सही ।
वो याद है तुझे , कैंटीन मे मेरा चिढ़ाना,
फिर बिना बात के दोस्तों से मुझे पिटवाना ।
वो तेरा चिढ़ना, मेरा चिढ़ाना ,
मेरे लंबे बालों मे तेरा उँगलियाँ फिराना ।
घनी दाढ़ी ,जीन्स ,कुर्ता और कोल्हापुरी चप्पल ,
यही वो दिन थे जब मैं ,मैं हुआ करता था ।
हर पल साथ रहना आदत सी थी हमारी,
क्या पता था , इस पर भी वक़्त की मिट्टी जम जाएगी ।
हर चीज़ पे हसना , बहस करना फिर बात मनवाना ,
सच , हम किसी की भी नहीं सुनते थे ना ।
वो क्या था हम दोनों के बीच नहीं पता ,
शायद इसीलिए कि हम, ना-समझ बच्चे थे ना ।
पर कुछ खास तो था उस बचपन मे ,
तभी तो एक टीस है अभी भी इस मन मे ।
वो प्यार , वो दर्द आज समझ पाया हूँ ,
शायद यही सज़ा है मेरी , जहां हूँ ....... भटकता आया हूँ ।
आज भी वो किताब मेरे पास रखी हैं ,
जो मेरी बेवकूफ़ियों से मुझे रूबरू कराती है।
जिसमे तुम्हारी स्नेह की स्याही रची है,
जिसमे तुम्हारे प्यार के लफ़्ज़ गूदे हैं ।
जिसमे मेरी गुनाह और नासमझी के पन्ने हैं,
तेरे आँसू और कराह की जिल्द चढ़ी है ।
काश ये किताब कोरी हो जाती फिर से ,
मैं इसे प्यार के सुनहरे स्याही से ,फिर सजाता ।
शौर्य शंकर
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