Monday, 24 December 2012

"मेरी माँ "


जब कभी मैं उलझता हूँ खुद से ,
मेरी ऊँगली पकड़ सुलझाती है , मेरी माँ ...

जब कभी मुझे ठेस कोई लग जाती है ,
ज़ख्म से निकलते ख़ून को देख कराहती है, मेरी माँ ...

जब कभी मैं जीवन की आपा-धापी से थक जाता हूँ,
अपने गोद में मेरा सर रख सुलाती है ,मेरी माँ ....

जब कभी मैं देर रात घर आता हूँ ,
पलकें बिछाए मेरी राह- तक जगती  है ,मेरी माँ ....

जब कभी मैं निराशा की रात में गुम होने लगता हूँ ,
नई उम्मीद की सुबह से रूबरू कराती है ,मेरी माँ .....

जब कभी दुनिया की कड़वाहट से जी उब जाता है मेरा ,
अपने प्यार से लिपटी मिशरी की डली खिलाती है ,मेरी माँ .....

जब कभी लोगों की बातें रूह तक छेद जाती है ,
मेरी पीड़ भी उधार ले जाती है ,मेरी माँ .....

जब कभी ज़िन्दगी की झुलसती धुप में पैर जलते है  मेरे ,
पैरों के छालों पर मल्हम लगाती है ,मेरी माँ ....

जब कभी बुरी नज़रें राह घेर लेती है मेरा,
काजल बन उनसे भी लड़ जाती है ,मेरी माँ .......



शौर्य शंकर

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