Saturday, 1 December 2012

जब मैं पैदा हुआ...

एक टक देखता, यहाँ-वहाँ।
सबकुछ, बिलकुल था नया,
देखूं जहाँ।

अनसुनी आवाज़े हर तरफ,
कभी न पहले देखे थे,
वो चेहरे।

सब पता नहीं,
क्यों खुश थे?
आँखे चमकती, घूरती, बड़ी-बड़ी, इधर-उधर,
सबकी ख़ुशी से।

हर तरफ,
आवाज़ के कुछ सिक्के,
खनकते, गिरते, लड़ते-झगड़ते से, बातें करते;
कुछ इस तरह, जैसे,
बधाई हो! बधाई हो! बधाई हो!!!

ये सबकुछ मेरी समझ से,
बिलकुल था परे।
मैं तो बस मुस्कुराता,
उन अजीब से चेहरों को देखकर।
जो बड़े डरवाने से लगते,
हँसते, नाचते, शोर करते।

No comments:

Post a Comment