Saturday, 2 February 2013

"मेरा साथ दोगी ना..".

जब मैं ज़िन्दगी के ऊँचे-नीचे, पथरीले रास्तों पर चलते थक जाऊंगा।
बोलो, तो तुम मेरा साथ दोगी ना...

जब ज़िन्दगी में कुछ ना कर पाने की झुन्झुलाहट, सबसे दूर ले जाएगी।
बोलो, तो तुम मुझे गले से लगाये सबके करीब लाओगी ना...

जब कभी मैं चलते-चलते राह से भटकने लगूंगा,
बोलो, तो तुम मेरा कान पकड़कर मुझे सही राह पर लाओगी ना...

जब किसी की बातें मेरा दिल रुलाने लगेंगी,
बोलो, तो तुम अपने  कंधे पर मेरा सर रख चुप कराओगी ना...

जब मैं जीवन की गाड़ी को खींचते, थका बेहाल सा थम जाऊंगा,
बोलो, तो तुम मेरा हाथ बटाओगी ना...

जब किस्मत के दिए छाले, मेरे हाथों की लकीरों को नाकाबिल बना देंगी,
बोलो, तो तुम उन्हें चूम के फिर से काबिल बनाओगी ना...

जब कभी कामयाबी का घमंड, काई बनकर मुझपर जमने लगेगी,
बोलो, तो तुम अपनी आगोश में मुझे पिघलाकर सोना बनाओगी ना...

जब मैं अपने मेहनत के ईंटो-गारों से सपनों का मकान बनाऊंगा,
बोलो, तो तुम अपने स्नेह और प्यार से उसे घर बनाओगी ना...

जब चलते पैर लड़खड़ाने लगें और मुझमें एक कदम और भी चलने की साहस नहीं होगी,
बोलो, तो तुम मेरा हाथ थाम मुझे हौसला दिलाओगी ना...

जब बुढ़ापा घेर लेगी मुझे और आँखों की रोशनी धुंधलाने लगेगी,
बोलो, तो तुम अपनी आँखों से दुनियां दिखाओगी ना...

जब  आस-पास ना दोस्त होंगे, ना माँ होगी, ना भाई होगा, ना कोई अपना होगा,
बोलो, तो तुम हाथ थामें मेरा साथ आखरी स्वांस तक निभाओगी ना...

-शौर्य शंकर 

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