Sunday, 18 November 2012

"टुकड़े..."

मेरे प्यार के टुकड़े, जो ज़मीन पर बिखरे थे।
आज उसे चिड़िया चुग ले गयी।

तेरी आवाज के टुकड़े जो मेरी जेब में पड़े थे।
आज धुल गए कपड़े धोते हुए।

वो मेरी आह के टुकड़े, जो लहूलुहान पड़े थे।
आज मेरी माँ के पैरों में चुभ गए।

मेरी आँखों से टपकते खून के जो टुकड़े पड़े थे।
कुछ शिकारी कुत्ते खड़े चाट रहे हैं उसे।

मेरे दिल के जामे के जो टुकड़े पड़े थे।
आज सड़े मांस की तरह बास करने लगे।

मेरी नब्ज़ में तैरती तेरी यादों के जो टुकड़े पड़े थे।
आज वो नब्ज़ भी सूखे के मारी पड़ी है वहीं।

तेरे झूठे इश्क के कील के जो टुकड़े पड़े थे।
आज मेरे गले को छेद चुके हैं।

वो तेरे प्यार में बजते घुँघरू के जो टुकड़े पड़े थे।
आज तूने उसे अपने जूती के नीचे कुचल दिया वहीं।

वो मेरी पलकों पर हमारी यादों के घोसलों के जो टुकड़े  पड़े थे।
आज भी तिनकों के मलबे तले उनकी लाशें दबी है वहीं।

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