मोती से गिरते बारिश की बूंदे,
गिरते मन को भाते हैं।
उछलती कूदती खुशहाल बच्चों सी,
सबको एक सी भिजती है।
इस बेरन धरती को एक बूँद ही तो,
अपनी किलकारियों से माँ बनाती है।
छूने में तो आम नीर है,
पर बरसों से प्यासे मन की प्यास बुझती है।
गिरते मन को भाते हैं।
उछलती कूदती खुशहाल बच्चों सी,
सबको एक सी भिजती है।
इस बेरन धरती को एक बूँद ही तो,
अपनी किलकारियों से माँ बनाती है।
छूने में तो आम नीर है,
पर बरसों से प्यासे मन की प्यास बुझती है।
No comments:
Post a Comment