भोर की मन्द पुंज,
फूलों की भीनी महक,
ओस की ठंडी बूँदें,
चिड़ियों की मोहक चेह्चहाहट,
मुर्गे की पहली बांग,
वो ठंढी शीतल रेत,
कुहासों से ढंका पग,
झींगुर की तेज आवाजें,
वो मवेशियों का शोर,
चौकीदार की सीटियाँ,
हाथ में पीतल का लोटा,
वो सरपट भागती सी चाल,
पतली पगडण्डी का पीछा,
पहुंचे बीहर के पार,
आँखें दौड़ती हर ओर,
वखत आन पड़ा घनघोर,
अब लोटा धर भाग लिए,
जा बैठे पेड़ की ओट,
बमबारी हुई बहोत जोर,
कुछ गंध पहचानी सी,
गाने भी गुनगुनाये वहां,
इमारते बनती गयी कारवां बढ़ता गया,
रवानगी ली नदी की ओर,
तोडा नीम का छोटा सा छोर,
मांज लिए दांत भी अब तो,
लोटा घिस साफ़ किया,
डुबकी मारी गंगा की गोद,
चंचल धारा निर्मल मन,
तन-मन भी धो लिए हम,
जनेऊ पकड़ साक्षात् खड़े,
सूर्य के जल अर्पण को,
माँ गंगे का नाम जपे,
जल भर चले मंदिर की ओर,
मंदिर के पवित्र दर्शन को,
मन को जगाती घंटियाँ,
आत्मा को महकाती अगरबत्तियां,
जो खीचे मन को अपनी ओर,
पुष्प और बेलपत्र लिए तोड़।
चल दिए अब भोले की ओर,
सीढियां चढ़ते हो गयी भोर।
सूरज मल चन्दन धूप की,
लगा आराधना करने अति जोर।
मैं भी पीछे क्यों रहूँ, लोटा धर,
पुष्प रखा, बेलपत्र ले आगे बढ़ा।
चारों ओर मन्त्र की गूँज,
जल चढ़ा शिव स्वक्ष किया।
पुष्प बेलपत्र अर्पण किया,
फिर शिव पे चन्दन का लेप।
हाथ जोड़ खुद धन्य हुआ,
तन और आत्मा पवित्र किया।
शांत मन ले चला,
अब अपने घर की ओर।
फूलों की भीनी महक,
ओस की ठंडी बूँदें,
चिड़ियों की मोहक चेह्चहाहट,
मुर्गे की पहली बांग,
वो ठंढी शीतल रेत,
कुहासों से ढंका पग,
झींगुर की तेज आवाजें,
वो मवेशियों का शोर,
चौकीदार की सीटियाँ,
हाथ में पीतल का लोटा,
वो सरपट भागती सी चाल,
पतली पगडण्डी का पीछा,
पहुंचे बीहर के पार,
आँखें दौड़ती हर ओर,
वखत आन पड़ा घनघोर,
अब लोटा धर भाग लिए,
जा बैठे पेड़ की ओट,
बमबारी हुई बहोत जोर,
कुछ गंध पहचानी सी,
गाने भी गुनगुनाये वहां,
इमारते बनती गयी कारवां बढ़ता गया,
रवानगी ली नदी की ओर,
तोडा नीम का छोटा सा छोर,
मांज लिए दांत भी अब तो,
लोटा घिस साफ़ किया,
डुबकी मारी गंगा की गोद,
चंचल धारा निर्मल मन,
तन-मन भी धो लिए हम,
जनेऊ पकड़ साक्षात् खड़े,
सूर्य के जल अर्पण को,
माँ गंगे का नाम जपे,
जल भर चले मंदिर की ओर,
मंदिर के पवित्र दर्शन को,
मन को जगाती घंटियाँ,
आत्मा को महकाती अगरबत्तियां,
जो खीचे मन को अपनी ओर,
पुष्प और बेलपत्र लिए तोड़।
चल दिए अब भोले की ओर,
सीढियां चढ़ते हो गयी भोर।
सूरज मल चन्दन धूप की,
लगा आराधना करने अति जोर।
मैं भी पीछे क्यों रहूँ, लोटा धर,
पुष्प रखा, बेलपत्र ले आगे बढ़ा।
चारों ओर मन्त्र की गूँज,
जल चढ़ा शिव स्वक्ष किया।
पुष्प बेलपत्र अर्पण किया,
फिर शिव पे चन्दन का लेप।
हाथ जोड़ खुद धन्य हुआ,
तन और आत्मा पवित्र किया।
शांत मन ले चला,
अब अपने घर की ओर।
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