Sunday, 25 November 2012

तू...

मेरे रोम-रोम में समाई है,
              मेरी रूहानी परछाई है , तू।
मेरी ज़हन में फैली ग़फलत है,
              मेरा हाथ थामे चलती मज़हब है, तू।

मेरे नब्ज़ में बहते ख़ून की रवानी है,
              मेरे एहसासों की जीती-जाती कहानी है, तू।
मेरे प्यार के बुत की ताक़त रूहानी है,
              ख़ुदा के इबादत की मुहँ-ज़ुबानी  है,  तू।

मेरे हर साज़ में बजती राग-भोपाली है,
              मुझमें हर पल खिलती जवानी है,  तू।
मेरे दिल के झरने से बरसती अमृत का पानी है,
              गंगा किनारे की, कोई सुबह सुहानी है , तू।



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