Thursday 17 January 2013

" सर्द रातों में "


वो दिन याद है मुझे , आज भी ,
जब सर्द रातों में, सबसे नज़रें बचाके ,
रजाई में दुपके मन को अपने साथ लिए ,
हम उस चांदनी रात में झील किनारे मिलते थे।

उस लीची के पेड़ के नीचे खड़ी दुपट्टे में ,
ऐसी लगती ,जैसे कोई हंसनी चाँदी लपेटे खड़ी हो ,
जिसके मन से, बरखा बरसती मुझे देखने पर ,
तेरा  शर्माना, झिझकना चार चाँद लगा देता ,खूबसूरती में।

अपनी आँखों में मेरी तस्वीर लिए,
विचलित ,बेचैन सी राह तकती मेरा ,
मेरे आने पे , आँखों में चमकती वो बूंद ,
फिर मेरी छाती से तेरा लिपट जाना।

उस लालटेन की पिली रौशनी ओढ़े तुम,
मेरी ऊँगली पकड़ के, उन पगडंडियों पर चल देती ,
अपने सपनो के घर , जो वहां  दूर, उस नदी किनारे हैं ,
जहाँ सिर्फ तू , मैं और हमारे सपने उड़ते हैं, जुगनू बनके ।  




शौर्य शंकर                                                                                                                                                                                                                                                            


Tuesday 15 January 2013

" तू आती क्यूँ नहीं "



मौसम आते है ,
कुछ दिन साथ -साथ रहते ,
फिर चले जाते हैं ,
वो तो ,हर साल मिलने आती है।
 तू आती क्यूँ नहीं ......

मुझसे पहले मेरे बस-स्टैंड पे आना ,
घंटों ,मेरी राह तकते रहना ,
एक ही बस में आना ,फिर जाना,
तेरी याद , आज भी मेरी पीछे आती है ,
तू  आती क्यूँ नहीं .....

मुझसे आँखे चुराना ,
फिर कनखियों से देखना ,
छुपके बात सुनना ,फिर दोस्तों से मेरी बातें करना ,
वो बातें तो मुझसे मिलने आती है,
तू आती क्यूँ नहीं .......

मुझे खेलते देखना ,
हर एक रन , विकेट लेने पर तालियाँ बजाना ,
कैच पकड़ते हुए मुझे चोट लगने पर,
तेरी आह दौड़ के मेरे पास आती है ,
तू आती क्यूँ नहीं ......

मेरा हमेशा ध्यान रखना,
ख़ुशी में हसना , परेशानी में उदास हो जाना ,
अपने रुमाल पे मेरा नाम लिखना ,छुप-छुप के उसे देखना ,
उस रुमाल की ख़ुशबू तो मिलने आती है ,
तू आती क्यूँ नहीं ......

मेरे जाने पे , मेरी जगह बैठे रहना ,
टेबल पे मेरा नाम लिखना ,एक-एक अखर को प्यार से सहलाना ,
चूमना उसे , फिर अपने मन में बसा लेना,
वो छुवन तो कभी-कभी मेरे पास  आती है,
तू आती क्यूँ  नहीं ......



शौर्य शंकर 



Sunday 13 January 2013

"wisdom is all I have"





You can achieve ,
whatever you want in life ,
you are running after everything
to win the world and lose your soul.
Your are alive , so be alive 
and being alive , get up,
walk , run for triumph.

Overcome your darkest days n nightmares,
move across every obstacles,
thats just to make you stronger,
just to push our limits ahead and what you are?  
So Listen more ,be eloquent ,
Watch around, school yourself ,
Because Wisdom is all we need .

Wisdom is better than silver or gold,
Sweeter than sugar ,
Brighter than sun ,
colder than Ice,
softer than feather.

This is all I have ,
all I get , all I earn,
all I taste ,
till now ...... "WISDOM"


Shaurya Shanker

Thursday 10 January 2013

" तेरी परछाई ......".

आँखें बंद किए बैठी है ,
उस टूटे मोड़े पे सुबह से।

              कभी अपने सीले हाथ ,
              तो कभी बदन सेकती।

अपने ख़ुले गीले बाल सुखाती ,
धूप के पंखड़ियों पर बैठी गर्माहट से ।

                                                     तेरी परछाई .......


दिन ढलने पर कभी - कभी मिलने आती है ,
और मेरी खिड़की पे, घंटों बैठी रहती है। 

               फिर कभी, एक आँख मीचे सीटी मारकर ,
               एक अलग ही अंदाज़ में , मुझे बाहर बुलाती है।

कभी हाथों में हाथ डाले घंटों , ज़ीरो-काटा खेलती  है,
आसमान के कोरे पड़े कागज़ के, एक कोने में ।
                                                  तेरी परछाई .......

कभी उन थके ,मंद पड़े तारों से बात करते ,
कुछ उनकी सुनते , कुछ  अपनी सुनाते।

              जब बादलों पे चढ़ते थक जाता हूँ  मैं  ,
             तो उसके गोद में, सर रख कुछ देर सो जाता हूँ  ।

कभी वो अपने आँचल के कोने से कान गुदगुदाती,  
तो कभी अपने लम्बे बाल मेरे चेहरे पे डाल देती।
                                             
                                                तेरी परछाई .......



चांदनी का पीछा करते अपने ही ख़यालों में,
हम बहुत  दूर तक निकल जाते, साथ -साथ ।

              उसके पंजे ,मेरे पंजों पर,उसके हाथ मेरे कंधों पर होते  ,
              जब कभी चलते-चलते दुखने लगते थे पैर उसके।

और हमारे आँखों के जोड़े सिमट जाते, एक  हो जाते ,
खो जाते , समा जाते , पिघल कर मोम हो जाती थी।





' शौर्य शंकर '


                                              

Saturday 5 January 2013

' शोर '


चलते-चलते मैं , थक गया ,
रुका , अपनी साँसों को समझाने .

कुछ देर और लग गई मुझे,
डूबी साँसों को साहिल तक लाने में .

बैठे - बैठे देखा ,शोर चारों तरफ ,
भीड़-भार भरी सड़कों पर चलती गाड़ियाँ .

पी-पी , ट्रिन-ट्रिन शोरों के बीच ,
रेंगते से दिखते लोग थोड़े-थोड़े .

जुबां पे गालियाँ , आँखों में ख़ून लिए लोग ,
एक-दूसरे को घूरते ,बे-रहम गिद्धों की तरह .

सब को एक दूसरे से आगे निकलना है ,
क्यूँ और किस  बात की जल्दी है , पता नहीं .


' शौर्य शंकर '