Wednesday 24 December 2014

कैसे मिटाऊं ......

कैसे मिटाऊं तेरा चेहरा मैं दिल से अपने
जितना घिसूँ दिल वो उतना साफ़ दिखे है

न देखूं , न लिखूं , न बोलू मैं कुछ अब
तू ही तू जो मुझे अब हर जहाँ में दिखे है

तेरे लब कुछ यूँ मुझे परेशान करे है
ख़्वाब में रोज़ क्यों कर मुझे चूमा करे है

तू भाए है मुझे क्यों कर बहुत बूझूं न
तेरी हर फ़िज़ूल बात भी क्यों याद आया करे है

ख़ुदा भी क्यों खेले है मेरे दिल से, बूझूं न
जब नहीं कुछ दिल में फिर सब से क्यों मिलवाया करे है


~ शौर्य शंकर 

कोई तूफ़ान है....

कोई तूफ़ान है सीने में जो सांय-सांय करे हैं
मैं काबिल नहीं तो न सही, मेरे अलफ़ाज़ बयां करे है

हर हर्फ़ मेरा दर्द, मेरी आह बयां करे है
जिनपे लोग महफ़िल में 'शौर्य ' वाह-वाह करे है

तेरी लौ सीने में जली तो ख़्वाब बन गए
जो लौ में मैं हुआ राख तो मिसाल बन गए


~ शौर्य शंकर



Wednesday 17 December 2014

पेशावर अटैक.....

उन मासूमों के याद में (पेशावर अटैक )...
किसी के आँखों का तारा था
किसी माँ का बेटा दुलारा था
किसी के आँगन में बजती पाजेब थी
किसी बूढ़े बाप का सहारा थी

किसी माँ का ख़्वाब खेलता था उसमे
किसी परिवार के उम्मीदों का किनारा था उसमे
किसी अंधी आँखों की रौशनी थी उसमे
किसी मुल्क़ का मुस्तकबिल सुनेहरा था उनमे

मुस्कुराके गले लिपट गए उस बारूद के वो
कैसा भोला बचपन खिलखिलाता था उनमे
क्या कसूर था उनका वो पूछेंगे भी नहीं
उन्हें क्या लेना क्या मेरा क्या तुम्हारा था उनमे

तुम भी तो किसी माँ की आँचल में खेलते थे
फिर क्यों सैकड़ों की कोख उजाड़ा है तुमने
उन फरिश्तों को तो पनाह मिल गई होगी खुदा के घर
ये तो बतादे, तुम्हारा क्या बिगाड़ा था उन्होंने

अब तो अच्छी लगती होंगी तुझे वो वीरान गलियाँ, वो घर
बारूद के टीलों पे जो रख दिया है ये शहर तुमने
जा देखले हर चौखट पे खाट उलटी खड़ी है
हर आँगन से चीखने की आवाज़ें तो सुनली होगी तुमने
अब बहादुरी का तमगा तो मिला ही होगा तुझे
पूरी इंसानियत को जो शर्मशार कर दिया तूने
वो करेंगा फैसला तेरा भी एक न एक दिन ज़रूर
 खुदा  करे न ज़मीन नसीब हो न आसमान ही तुझे  



~शौर्य शंकर 

Tuesday 16 December 2014

शायर कर दिया ....

हमे तो इश्क़ के एहसास भर ने ही शायर कर दिया
शुक्र है खुदा का , नहीं तो हम भी मारे-मारे फिरते

कुछ शक्स इश्क़ कर के बदनाम हो गए  
कुछ इश्क़ लिख के नाम कर गए



~ शौर्य शंकर 

Saturday 13 December 2014

हूँ तो क्या ...

आज एक पुँज भर हूँ तो क्या
कल सूरज बन चमकना है मुझे

आज एक छोटी बूँद हूँ तो क्या
कल समन्दर सा अथाह बनना है मुझे

आज एक हवा का झोखा हूँ तो क्या
कल आंधी सा वेग पाना है मुझे

आज एकदम अकेला खड़ा हूँ तो क्या
कल पूरी दुनिया को अपना बनाना है मुझे

आज मैं ज़र्रा भर हूँ तो क्या
कल काएनात मुठ्ठी में लाना है मुझे

आज ही चलना शुरू किया है तो क्या
कल दूसरों का रास्ता बन जाना है मुझे

आज छोटा बुलबुला भर हूँ तो क्या
कल इसी से सपनो का इन्द्रधनुष बनाना है मुझे

आज ही लड़ना शुरू किया है मैंने तो क्या
कल इसी को सुनेहरा इतिहास बनाना है मुझे

~ शौर्य शंकर 

Sunday 30 November 2014

हम वो हैं....

हम वो हैं जो वादों पे जिया करते हैं
कागज़ों पे जीने वाले अक्सर फ़र्ज़ी होते है


गले मिलो बात करो , कुछ वक़्त और गुजार लो
कल का क्या पता, फलक का तारा हो गया तो

लोग कई आएँगे तेरे दर पे कुछ न कुछ मांगने को
जो सब कुछ अपना छोड़ आए तो समझना मैं आया था

आज तेरे नूर-ए-कमर पे मरते होंगे लाखों
जब इनमे से कोई भी न हो तब मेरे पास चली आना

है दौलत तो क्या है तेरे पास ए दोस्त
मेरे जैसा जीने का अंदाज़ कहाँ से लाओगे

खूब ज़िद्दी होगा तू सही ए खुदा तो क्या
मैं भी क़यामत तक हार नहीं मानने का



~शौर्य शंकर

Saturday 29 November 2014

क्या ये ही हैं...




क्या ये ही हैं इश्क़ के सिक्के के दो पहलु
कि एक तरफ़ ख़ुदा दीखे दूजी तरफ तू

~  शौर्य शंकर 

Friday 28 November 2014

अब कुछ भी नहीं लिखूंगा ....






अब कुछ भी नहीं लिखूंगा ये ठाना था मैंने
फिर क्या था दोबारा इश्क़ हुआ और सब चौपट हो गया



~  शौर्य शंकर 

ये शहर में धुआँ-धुआँ सा क्यों है .....



दिल में छुपा रखा था सालों से तेरा इश्क़
अचानक ये शहर में धुआँ-धुआँ सा क्यों है

कभी कहा की इश्क़ है, कभी कहा नहीं
मैं ही भरमाया हूँ या कोई साया सा है

अब चाँद में भी तू ही दिखे है मेरे माशूक़
इतना तो बता दे आखिर इस मर्ज़ की दवा क्या है

वो बे-शर्म घुमते है शहर में हज़ार वादे तोड़ के भी
हमने तो बस इश्क़ किया ' शौर्य ' और चेहरा छुपाए घुमते हैं

~ शौर्य शंकर 

Friday 21 November 2014

"सोच.."

कवि महान नहीं होता
कविता भी महान नहीं होती
न ही सुन्दर होती है


महान तो होता है
उसके उत्सर्जन का श्रोत
वो सोच
जहाँ से वो पनपता है


कवि तो बस
सोच के वीर्य को
अपने मस्तिष्क की कोख में
एक काया, स्वरुप प्रदान करता है

असमाजिक समाज , साम्प्रदायिकता , पूंजीवाद , भूक ,ग़रीबी , द्वेष के
तपिश में जब वो क़तरा-क़तरा पनपता है
और शब्दों की चमड़ी चेहरे पे ओढ़ता है
शिशु बनता है
जन्म लेता है


और जब
एक कंधे पे विवशता
दूसरे पे लाचारी लटकाए
भूखे किसान की हथेली में रखे
राशन कार्ड पे दर्ज़ नाम की स्याही
पसीने से धुल जाती है
तब छाले पड़े हथेलियों की लकीरों से
लहू बनके टपकता है

नाकामी , इर्षा, आत्मग्लानी की लू मे
झुलसता है, चीखता है
तब पेट-भर स्वांस से
बुलंद आवाज़ में  नारा लगाता है
"इन्किलाब ज़िंदाबाद "
और बूँद बन गिर जाता है
पल में मिट्टी में मिल राख़ हो जाता है

वही राख युवा जब अपने
मस्तक पे लगता है
हाथ में तिरंगा लिए
सड़कों पे उतर आता है
और दोहराता है
"इन्किलाब ज़िंदाबाद , इन्किलाब ज़िंदाबाद . .... "


तब वो महान हो जाता है
वो सोच " इन्किलाब " ले आता है . ....




~शौर्य शंकर

Tuesday 18 November 2014

बूढी माँ....

मिला जब भी किसी बेहाल बूढी माँ से
तो उसका जवान बीटा मैं हो गया
वो अगर मुसलमान थी तो मैं खुद भी
हिन्दू से मुसलमान हो गया

~शौर्य शंकर 

Sunday 9 November 2014

हो गई ...



अजी सिक्कों का कहाँ वजूद था जो कुछ ख़रीद सकते
वो तो इंसान की फ़ितरत है जो हर चीज़ खरिदने-बेचने की हो गई

ऐ-वई बदनाम किये फिरते हैं कमबख़्त दूसरों को
वो तो हमारी नीयत है जो दूसरों को लूटने की  हो गई


हर चीज़ से नवाज़ा है खुदा ने हमें, शुक्र है
वो तो बस ये आदत है जो हमारी-तुम्हारी करने की हो गई


~शौर्य शंकर
  

Thursday 23 October 2014

लोग कहते है ....


लोग कहते है
कि मैं होश में भी बेहोश रहता हूँ
वो बेख़बर है
कि मैं तो तेरे इश्क़ में मदहोश रहता हूँ


आसमान से ज़मीन तलक
हर ज़र्रे में सुबह-शाम धड़कता हूँ
अब कुछ और कर ऐ ज़माने 
कि मैं तो हर ज़ुबान पे मौजूद रहता हूँ

~शौर्य शंकर

Saturday 4 October 2014

मैं ....


मैं हर चेहरे से मोहब्बत कर बैठता हूँ गोया
मेरे माशूक़ का चेहरा तूने दिखाया जो नहीं

मैं हर ज़र्रे में तेरा ही अक्स खोजता हूँ
मुझे किसी मज़हब से कभी तूने रूबरू कराया जो नहीं

मैं आग का दरिया तक पार कर जाऊँ  गोया
मुझे मिलने को कभी तूने बुलाया जो नहीं

खुद को कभी-कभी आइने में पा लेता हूँ
तुझे जिसमे पा लूँ वो आईना अभी तक देखा जो नहीं

~ शौर्य शंकर 

Saturday 21 June 2014

कुछ कहो न ......



ये रात बीत रही है
इसको रोक लो न
यूँ चुप क्यों बैठी हो
कुछ तो कहो न
कुछ होने लगा है मुझे
ऐसे मत देखो न
जुबां से न सही
आँखों से ही कुछ कहो न


~ शौर्य शंकर 

Wednesday 28 May 2014

देख न....

May 28, 2014




दरमियान हमारे जो भी

बातें,
मुलाकातें,
मुस्कुराहटें,
खुश्बूएं,
छुवन,
नज़रें,
यादें,
सपने,
एहसासें,
इशारे,
रुबाइयाँ,
सिहरने,
आहें,
इन्तज़ारें,
शिकायतें थीं ....

चंद ही दिनो में धूल जमने लगी है उनपे
उन्हें बैठ कर साफ़ कर रहा हूँ

यादों के उन्ही गिरहों को खोल रहा हूँ
उनमे से कुछ दम घुटने से मर चुके हैं

बाकियों के मुह में फूक,
दम भर रहा हूँ

लावारिस पड़े हैं
 वो यहाँ से वहां

उनकी लाश से लिपट
हस तो कभी रो रहा हूँ

हो सके तो दुआ करना
इन हमसायों के लिए


-शौर्य शंकर 

Friday 23 May 2014

क्या वो भी कभी ...




क्या वो भी
कभी अंधेरे में मुझसे बतयाती होगी
कभी मेरा नाम लिखती फिर मिटाती होगी
कभी अकेले बैठे मुझे सोच के मुस्कुराती होगी
कभी पुरानी यादों में आँसू बहती होगी
कभी मेरे प्यार के बुलबुले उड़ाती होगी
कभी आहट होने पर किवाड़ तक आती होगी

या
कभी झरोखे पे बैठे दिन बिताती होगी
कभी पलकों पे धरे नींद फूक के उड़ाती होगी
कभी मुझे मिलने ख़्वाबों में जाती होगी
कभी जल्दी में जूते पहनना भूल जाती होगी
कभी दुनिया से डर के मुझमे सिमट जाती होगी
या कभी मुझे याद कर डार्क चॉक्लेट खाती होगी .

~शौर्य शंकर 

Thursday 15 May 2014

Don't know.....



Arriving somewhere but don't know where..
Looking for something but don't know what.

Waiting for someone but don't know whom..
Lost everything but don't know what.. 

So many things to say but don't know how..
Got some new feeling but don't know why..

~Shaurya Shanker

भीनी ख़ुश्बू ....




वही मिट्टी की भीनी ख़ुश्बू
वही लहरों पे तैरती  ठंडी हवा

वही बाँस के सूखे सुनहरे पत्ते
वही चौराहे के पुराने पेड़ की आम्मियाँ

और वही नदी किनारे महुए के पेड़ की बेघर परछाई
जो मेरा हाथ थामे गाँव के पंचायत जा  रही है 


~ शौर्य शंकर 

जबसे .....



जबसे तेरा नाम सुना है 
सुबह-शाम 
जपने लगा हूँ 

जबसे तेरा दीदार किया है 
ख़ुद पे ऐतबार 
करने लगा हूँ 

जबसे तेरा इश्क़ चखा है 
रात-दिन मदहोश 
रहने लगा हूँ 



~शौर्य शंकर