Sunday 23 June 2013

तो क्या अब तिरंगे का रंग भी बदल जाएगा ?

ना केसरिया पगड़िया रही,
ना वीरो का चौड़ा ललाट।

ना ही अब त्यागी साधू रहे,
जो भगवा पहन उसका शौर्ये बढ़ाया करते थे।
अब बस रह गया है,
पाखंड यहाँ।

अब श्वेत रंग तो नेताओ की चमड़ी पे चढ़े भ्रष्टाचार और,
झूट की काली काई को छुपाने में इस्तमाल होने लगा।
अब ना ही इस देश में प्रेम पनपता है कही,
नाही सच्चाई लोगों से मिलने आती हैं यहाँ ।

किसानो के परिवार की लाशो पे खड़े
ये मॉल, फैक्ट्रीयो और इमारते,
और इमारतों की काली परछाई का राक्षस हँसता है,
सुबह-शाम ज़ोर-ज़ोर से।

हमारे देश का हरा भरा खेत ,
उन्ही हँसी की आवाजों से त्रस्त बंजर होने लगा है।
जिसे कुछ दिनों बाद बचाना भी मुमकिन ना हो।

अब तो ना ही रहा मन में, चक्र का मोल,
उन छब्बीस स्तंभों को भी कई बार हीलाया डुलाया गया हैं।

क्या रह गया है
अब इस देश में ?


सब कुछ तो बदल गया है


तो क्या अब तिरंगे का रंग भी बदल जाएगा ?





-शौर्य शंकर 

दूर कही देखो

दूर कही देखो कोई शाम ढली
दूर कहीं देखो कोई बात चली

घूंघट ओढ़ हवा चुपचाप चली
धीरे-धीरे रात देखो सीढियां चढ़ी 

पंछियों का झूंड रास्ते में खो गया 
तारों को आसमान में कोई बो गया

आधा चाँद झील में देखो गिर गया
मछलियाँ चांदनी कूपों में भर ले जाती रही

लहरें बिना कुछ कहे साहिल से चली गई
छुई-मुई कोने में खड़ी गुनगुनाती रही

पीपल की छाव गीलहरियों को डराती रही
तुलसी की खुशबू  दिये की लॉ हिलाती रही 

दूर कही देखो कोई शाम ढली
दूर कहीं देखो कोई बात चली



-शौर्य शंकर 

अरे देखो

अरे देखो
बारिश की बूंदों के भी दांत झड़ गए

अरे देखो
धूप के बाल भी सफ़ेद हो गए 

अरे देखो
हवा भी अब लाठी ले चलने लगी

अरे देखो
रात भी अब भोर तक सोती नहीं

अरे देखो
दिन को आँखों से कुछ दीखता नहीं

अरे देखो
पेड़ भी दम्मे को सिरहाने लिए बैठा रहा 

अरे देखो
खेतों ने कोई फसल इस बरस जनी नहीं

अरे देखो
नदी कई सालों से खाट से उठी नहीं

अरे देखो
चिड़ियों की कूक भी खांस बन गूंजने लगी





-शौर्य शंकर