Friday 8 September 2017

क्यूँ मुश्किल है इतना....


क्यूँ मुश्किल है इतना
जैसा हूँ वैसा बने रहना
हर क्षन ख़ुद को वैसा बनाए रखना
क्षनो की गोद में बैठा नवजात
ऑक्सिजन की गोद में
छटपटाता, संघर्ष करता
अपनी नन्ही हथेलियों से ढकेलता है
विकराल रूपी समय को
क्यूँ इतना जटिल है
भोथा, कठोर, कटाक्ष, कुरूप है
सरल क्यूँ नहीं है
त्वचा का रंग याद नहीं
कोई किराएदार रहने लगा
कुछ दिनो से
वो रोज़ आता है
अंधेरे में लहूलूँहॉन
रोशनियों से बचके
शहर की
पीछा करते हैं
हथियार लिए
जगमगाते बड़े दाँत वाले कीड़े
अपने घुटनो में छुपा लेता है चेहरा
जो अब किसी और के
चेहरे सा नहीं दिखता
ताकि कोई पहचान ना ले उसे
चेहरे से
क्यूँ मुश्किल है इतना....
पता नहीं आँखें कैसी थी
पता नहीं आइने में
कैसा दिखता था
पता नहीं आइना
कैसा दिखता था
माँ कैसी दिखती थी??
~शौर्य शंकर