Friday 26 April 2013

'भाई चल ना...... '


भाई चल ना .......
चाँद पे बैठ कर
आसमान में मछलियाँ पकड़ेगे।

भाई चल ना .......
अपने खटारे साइकिल पे
ख़्वाबों का जहाँ देखेंगे।

भाई चल ना .......
सपनो के साबुन से
ठहाकों के बुलबुले उड़ाएँगे।

भाई चल ना ........
धूप में गुम
मिट्टी की भीनी ख़ुशबू ढूँढेंगे।


भाई चल ना......
माँ के पैरों मे
आशीर्वादों का जहां जीतेंगे।





-शौर्य शंकर



Monday 8 April 2013

कभी हम



कभी तुमसे मिलने की ख़ुशी हुई
तो कभी, बिछड़ने का हुआ गम।

कभी कुछ कहने का मन हुआ
तो चुप काट दिए, वो हसीन पल।

कभी तुझे देखने का दिल हुआ
तो मुह फेरे बैठा था, तेरा तन।

कभी अकेले में तेरी तस्वीर बनाई
तो कभी, उसमे भरते रहे रंग।

कभी तेरी हसी के सिक्के बिने हमने
तो कभी, तेरी छुवन को चुमते रहे हम।


कभी तेरी आँखों में प्यार दिखा
तो खुदको, नाकाबिल समझने लगे हम।


कभी तुमने खुलके प्यार का इकरार किया
तो तेरी भलाई को, दूर रहने लगे हम।


~ शौर्य शंकर


  

"फुर्सत के पल"

शायद मेरी उसी
फटी निक्कर के जेब से
कहीं गिर गए, वो पल 

जब हम कंन्चों की आवाजों 
और लट्टू में मदहोश रहते थे 
कुछ और सूझता ही नहीं था 

या, शायद कुछ पता ही नहीं था 
या, उन् रंग बिरंगे कंचों
 जैसी दुनिया हम देखना ही नहीं चाहते थे 

दिन-रात फिरते रहना 
अपनी बचपन की बैलगाड़ी पे 
तरह-तरह के सुनहरे 
फुर्सत के पलों की पोटली लिए।

कुछ मेरी ही तरह थे,मेरे दोस्त 
और उन दोस्तों में एक कुत्ता 
जिसका नाम तो याद नहीं 
पर उसका प्यार, आज भी साथ लिए जीता हूँ ।
 कभी उन
 अंग्रेज़ी फिल्मों की तरह
 नदी किनारे रेत पे धूप सेकना 
और घंटों तक नहाते रहना।

कभी कांटें बनाते,
कभी मछलियाँ पकड़ते 
कभी आम चुराते, 
कभी लीची के पेड़ों पे घंटों बैठे रहते। 

और जब जामुन तोड़ते थक जाते 
तो भैसों के पीठ पे बैठ 
अपने-अपने घर को चल देते
पता नहीं कहाँ हैं वो 
..फु ...र्स ....त .....    .के  ....... प ....ल ....





 ~ शौर्य शंकर 

"बस यही करता रहा रात भर "





कभी तेरा नाम लिखा

तो कभी मिटा दिया

बस यही करता रहा रात भर।




कभी तेरी तस्वीर देखी

तो कभी छुपा दी

बस यही करता रहा रात भर।







कभी तुमसे मिलने के अरमान जगाए

तो कभी सुला दिए

बस यही करता रहा रात भर।




कभी तुझे ख्यालों में पाया

तो कभी गुमा दिया

बस यही करता रहा रात भर।



कभी तू रूठ जाती

तो मैं मना लेता

बस यही करता रहा रात भर।




कभी ये सब सोच बत्ती जलाई

तो कभी बुझा दी

बस यही करता रहा रात भर।










~ शौर्य शंकर