Friday 13 September 2019

चलो फिर मिलो.....




चलो
फिर मिलो
वहीं, उसी जगह
उसी पहर
जब सूरज उढेल देगा
उबलता पीतल आसमान पे
आम्मठ बनाने को, तभी
साँझ चुपके से कुतर देगी
थोड़ा बग़ल उसका और
एक आँख मींचे
हुलकेगी पार उसके
ठीक उसी पहर
बेर देखूँगा
चली आना
गरम कुछ पहन लेना
ठंड हो जाएगी बहुत
और आते हुएँ
एक हँसिया और ख़ाली बोतल
रंगीन काँच हो जिसका
पार दिखता हो
लेती आना
पोखर किनारे
महुए के पेड़ के आढ में
दूपक के बैठेंगे
इंतज़ार करेंगे दोनो
उन सुनहरे परछाइयों का
पायल, झूमके कुछ नहीं पहनना
उनसे शोर होता है
वो डर जाएँगे
वो आते हैं
कहीं-किसी और दुनिया से
हर अमावस
और उतार देते है
सुनहरी केचूलि
चमकती हुई
पोखर में कुछ खोजते हैं
बड़ी बेसब्री से
फिर पथराई आँखों से
मोती सा कुछ झाड़ देते हैं
एक-एक कर बिन लूँगा
चुपचाप सारी केचूलियाँ
और तुम उनसे
रंगीन बोतल भर लेना
गूप्प अंधेरे में
पगडंडियों से होते हुएँ
उसी बोतल की रोशनी से हमें
चाँद तक जाना है
मेरे साथ ही रहना
हाथ थामे
मेरे बग़ल में बैठी रहना
चुपचाप, दूपक के
हाँ अगर सीपियाँ मिले तो उठा लेना
ज़्यादा नहीं दो- चार ही काफ़ी है
उन्ही सीपियों से थोड़ा- थोड़ा कर
आसमान भरना है हमें चाँद में
सुनो ध्यान से काटना आसमान
थोड़ा -थोड़ा छोड़ देना
जड़ मत काटना
थोड़े ही दिनो में
फिर उग जाएगा आसमान
उन्ही जड़ों में कहीं - कहीं
केचूली रोप देना
वो चमकेंगे तो
थोड़ा बादल डाल झाँप देना
नहीं तो चीलें चुग लेंगी
बहुत पसंद है उन्हें
चलो थोड़ा सा ही सही
देख तो पाएँगे
एक दूसरे को
महसूस तो कर पाएँगे
पता नहीं कब से
श्राप से ग्रस्त हैं दोनो
कबसे देखा नहीं एक दूसरे को
बाहों में भरा नहीं
कब से रूठे नहीं
कब से मनाया नहीं
माथा चूम कर
गले से लगाया नहीं
अगर इस बार नहीं हुआ ऐसा
अगली अमावस फिर आना होगा
क़रीब ११बार में श्राप होगा ख़त्म
हमें ही इन्हें मिलाना होगा
बिना तुम्हारे नहीं कर पाउँगा ये काम
तुम्हें मेरे साथ फिर चाँद तक आना होगा
सुनो रविवार को चला करेंगे उनसे मिलने
दोनो के साथ बैठा करेंगे
पैर लटकाके बैठना
एक कोने तुम,दूसरे पे मै
थोड़ी देर चाँद पे
सी-सॉ खेला करेंगे
~शौर्य शंकर

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