आज कल मैं, ये काम करने लगा हूँ।
सूरज के साथ, सुबह को शाम करने लगा हूँ।।
सूरज की लौ जलाके देखो, मैं दिन करने लगा हूँ।
कभी शाम को फूक से बुझा के, मैं रात करने लगा हूँ।।
रात के साथ मशाल लिए, पुरे गाँव में घुमने लगा हूँ।
यही दिनचरिया मुट्ठी में थामे, मैं आगे बढ़ने लगा हूँ।।
आज कल मैं, ये काम करने लगा हूँ ......
पिछले हफ्ते से ही मैं, यूँ बिना आराम रहने लगा हूँ।
सोई ख्वाहिशों को मैं, उम्मीदों के पंख, जो देने लगा हूँ।।
उन्ही ख्वाहिशों को लिए मैं, फिरसे जीने लगा हूँ।
हर मुश्किल को मैं घूँट-घूँट कर, पिने जो लगा हूँ।।
आज कल मैं, ये काम करने लगा हूँ .....
अब मैं सोता नहीं कभी, इतना काम करने लगा हूँ।
पुरानी आदतों को मैं यूँ, रोज़ नाकाम करने लगा हूँ।।
मैं कभी ख़ाली नहीं बैठता, इतना बेताब रहने लगा हूँ।
"ऐसा ही रहूं " यही प्रार्थना मैं, भगवान् से करने लगा हूँ।।
आज कल मैं, ये काम करने लगा हूँ।
सूरज के साथ सुबह को, शाम करने लगा हूँ।।
-शौर्य शंकर
सूरज के साथ, सुबह को शाम करने लगा हूँ।।
सूरज की लौ जलाके देखो, मैं दिन करने लगा हूँ।
कभी शाम को फूक से बुझा के, मैं रात करने लगा हूँ।।
रात के साथ मशाल लिए, पुरे गाँव में घुमने लगा हूँ।
यही दिनचरिया मुट्ठी में थामे, मैं आगे बढ़ने लगा हूँ।।
आज कल मैं, ये काम करने लगा हूँ ......
पिछले हफ्ते से ही मैं, यूँ बिना आराम रहने लगा हूँ।
सोई ख्वाहिशों को मैं, उम्मीदों के पंख, जो देने लगा हूँ।।
उन्ही ख्वाहिशों को लिए मैं, फिरसे जीने लगा हूँ।
हर मुश्किल को मैं घूँट-घूँट कर, पिने जो लगा हूँ।।
आज कल मैं, ये काम करने लगा हूँ .....
अब मैं सोता नहीं कभी, इतना काम करने लगा हूँ।
पुरानी आदतों को मैं यूँ, रोज़ नाकाम करने लगा हूँ।।
मैं कभी ख़ाली नहीं बैठता, इतना बेताब रहने लगा हूँ।
"ऐसा ही रहूं " यही प्रार्थना मैं, भगवान् से करने लगा हूँ।।
आज कल मैं, ये काम करने लगा हूँ।
सूरज के साथ सुबह को, शाम करने लगा हूँ।।
-शौर्य शंकर
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