कभी देखा है तूने
सूरज को रोज सुबह दांत मांजते हुए।
कभी देखा है तूने
चाँद को छुपके रात में नहाते हुए।
कभी देखा है तूने
चांदनी को धुप में बाल सुखाते हुए।
कभी देखा है तूने
बादलों को अपनी सफ़ेद दाढ़ी रंगवाते हुए।
कभी देखा है तूने
बूढ़े आसमान को बिना दांत के मुस्कुराते हुए।
कभी देखा है तूने
मछलियों को रास्ट्रीय गान गाते हुए।
कभी देखा है तूने
जूग्नूओं को शाम में लालटेन जलाते हुए।
कभी देखा है तूने
रात को बरामदे पे जलती डिबिया बुझाते हुए।
कभी देखा है तूने
पीपल के पेड़ पे बैठी भूतनी को पंछी से डर जाते हुए।
कभी देखा है तूने
बगुले को नई कोलापुरी पहने ससुराल जाते हुए।
कभी देखा है तूने
दरिया को साबून रगड़-रगड़ के नहाते हुए।
कभी देखा है तूने
किनारे को धोती उठाए नाव से उस पार जाते हुए।
कभी देखा है तूने
बिल्ली को चाँद पे चढ़, आँख मीचे छीके से दूध चुराते हुए।
कभी देखा है तूने
काले कौवे को हवा पे गाय चराते हुए।
कभी देखा है तूने
मेंढक को महफिलों में कव्वाली गाते हुए।
कभी देखा है तूने .........
-शौर्य शंकर
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