Friday, 5 July 2013

"पाने को तुझे "




कभी तेरी यादें

खूटे से उतार लाता हु पाने को तुझे।

कभी मंदिर में

दिए कई जलाता हूँ पाने को तुझे।

कभी आँगन में

तुलसी लगता हूँ आने को तुझे।

कभी अरदास कई

कर जाता हूँ माँ के दरबार में पाने को तुझे।

कभी २१ सोमवार के

व्रत तक कर जाता हूँ पाने को तुझे।

कभी झगड़ के

दुनिया से लहूलुहान हो जाता हूँ, पाने को तुझे।

कभी तकता हूँ

ज़िन्दगी भर राह तेरा, एक दिन पाने को तुझे।

कभी जनम मैं

दूसरा भी ले आऊँगा दुल्हन बनाने को तुझे।  



-शौर्य शंकर

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