कुछ दिनों से तुम्हारे ख्वाब सिरहाने रखता हूँ।
जिनसे रात-भर गुफ्तगुं किया करता हूँ।
कभी हाथों में हाथ डाले बादलों पे चलता हूँ।
कभी झील किनारे जुगनुओ की बातें सुनता हूँ।
कभी चाँद की तेज़ खर्राटे की नक़ल करता हूँ।
कभी घंटों आसमान तले चांदनी चुनता हूँ।
कभी तेरी पायल के धुन को गीतों में बुनता हूँ।
कभी तेरी आँखों की परछाईयों को घंटों तक चूमता हूँ।
---शौर्य शंकर
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