Friday, 5 July 2013

"दिल के किसी कोने में"


दिल के किसी कोने में कोई बच्चा बैठा है चुप-चाप,
जो न कुछ बोलता है और न ही कुछ सुनता है कभी।
बस अतीत के कोयले से दीवार पे कुछ चेहरे बनाता है।
बड़े चेहरे, छोटे चेहरे, गोल तो कभी लम्बे चेहरे।
अतीत की कालिख में उसके हाथ की लकीरे मिटने लगी हैं।
कभी-कभी उन्ही लकीरों में से कुछ सिसक कर रो देते है।
थोड़ी सी भी आहट होने पे खून के आँसू जेब में रख लेते हैं।
उनका दर्द कुछ भी बोलता नहीं, बस बाहर झांकता है।

कुछ दिनों से अब वो छुप-छुप के कुछ देखने लगा है।
झरोखे के पास बैठे अब वो धीरे से गुनगुनाने लगा है।
जब धड़कन से पायल की रुनझुन मिलने आती है।
उसके पीछे दिल के चौखट तक अब वो जाने लगा है।
वो बच्चा अकेले ही अब नदी किनारे टहलने लगा है।
मिट्टी के गमलों में अब गेंदे के फूल उगाने लगा है।
कल से ही अब वो कुछ हल्का सा मुस्कुराने भी लगा है।

--- शौर्य शंकर

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