Tuesday, 16 July 2013

"वन्दे-मातरम"



कुछ ऐसी ही दुनियाँ रह गयी हैं,
जहां सच्चाई, अच्छाई की कोई कीमत नहीं।

जहां मेहनती होना अपराध है,
घोर अपराध।

जहां लोग इसी ताक में खड़े हैं,
कि लीप दिया जाए सबको अपने ही जैसे,
निकम्मे पन की कालिख़ से।

अब कुछ ऐसे ही लोग देश चलाते हैं,
नयी पीढ़ी के जीवन का मार्ग दर्शन और फ़ैसला करते है।
कुछ ऐसे ही लोगों के हाथों मैं हमारे देश और हमारा सुनेहरा भविष्य है।
जिनकी खुद की हथेली पे जातिवाद और भ्रष्टाचार की ग्रीस लगी हैं।

ताकि कोई अपने ढंग से जी ना सके।
अपनी एक नयी जगह और पहचान न बना सके।
एक अलग रास्ता न चुन सके।
अपना सफ़र पूरा न कर सके।

इसी विडम्बना के भयानक दाग को अपने चेहरे पर लिए,
हमारा भारत वर्ष रोज़ सुबह उठता है…. 

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