Friday, 5 July 2013

"कागज़ पे कुछ यादें..."



कागज़ पे कुछ यादें, कई दिनों से बिखरी थी।
उसपे आज मैंने कुछ लकीरें, खिंच दी है।
जिसमे तेरा ही चेहरा नज़र आने लगा है।
जिसे दिन से रात, रात से दिन, निहारा करता हूँ।
क्या करूँ, तेरी आँखों को उदास देख रो देता हूँ।
तेरे लबों का मस, मुझे सोने नहीं देता रात भर।
तेरी तस्वीर लिए, अब यूँ ही बेसुध बैठा रहता हूँ।
लोग मुझ पर हँसते, और पागल कह निकल जाते हैं।
अरे पागल तो वो हैं, जो  बेखबर जीते हैं, इश्क से।
मैं तो अब मोहब्बत में ख़ुदा से बात किया करता हूँ।

---शौर्य शंकर

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